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महाविद्यालय का सुव्यवस्थित संचालन
शासन के मंशा के अनुरूप हो रहा है चूंकि प्राचार्य प्रशासनिक प्रमुख होने अलावा मूलतः शिक्षक होता है अतः उसे स्वयं कक्षाएं लेकर पठन पाठन को प्रोत्साहित करना चाहिए । हमने लगातार यह कार्य बखुबी किया । स्नातक और स्नानकोत्तर स्तर पर हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य अध्यापन किया । चुंकि युवाशक्ति ऊजा के रचनात्मक उपयोग में व्यस्त रही इसलिए काॅलेज परिसर अनुशासनहीनता नही फटक पायी । प्राचार्य द्वारा शैक्षणिक स्टाफ के समक्ष समय पर आने, पुरे समय तक काॅलेज मे रहने तथा स्वयं भी लेने का जो उदाहरण प्रस्तुत किये उनसें यह तथ्य उभर कर सामने आये कि कक्षाएं नियमित रूप से चले तो अन्य समस्याएं या अव्यवस्थायें स्वतः समाप्त हो जाती है। संस्था के सुव्यवस्थित संचालन में यह प्रकिया बड़ी सहायक सिद्ध हुई है । पूरे स्टाफ के सहायोग से सकारात्मक वातावरण निर्मित हुआ है। ..
       शास्त्रों में वर्णित है - ' दुर्लभं भारत देशे जन्मः '
       भारत देश में जन्म लेना दुर्लभ है तथा महान देवता भी यहाँ जन्म लेने हेतु लालायित रहते हैं l हमसब सौभाग्यशाली है, जो यहाँ जन्म लेकर यहाँ की नागरिकता में पल-बढ़ रहे है l इस देश की सबसे बड़ी विशेषता यहाँ की उन्नत संस्कृति है , मानवतावादी चेतना है और बसुधैव कुटुम्बकम की भावना है l मनुष्य संस्कृति का निर्माता होता है l संस्कृति व्यापक जीवन-चेतना का नाम है l इसका अनुपालन और स्वस्थ परम्परा की रक्षा हेतु मानव संसाधन का निरंतर विकास आवश्यक है l शिक्षक, प्राध्यापक अथवा प्राचार्य बनकर हम संस्कृति और आदर्श तथा उन्नत परम्परा के विकास के लिए मानव संसाधन का संकल्पित भाव से विकास करते है और मानव जन्म लेने का फल भोगते है l जयशंकर प्रसाद की यह उक्ति हमें निरन्तर प्रेरित करती है - " तुम एक भी रोते हुए व्यक्ति को हसा देते हो तो मानव जन्म लेने का फल तुम्हें मिल जाता हैं l 
जय हिंद !

प्रो. उमाकांत मिश्र 
( पी-एच.डी., डी.लिट् )
प्राचार्य

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